साल 2020 में पद्मश्री विजेताओं का नाम काफी चर्चित रहा। इस चर्चा में एक विशेष आकर्षण रेड कारपेट में एक सादी सी साड़ी पहने, नंगे पाँव राष्ट्रपति तक पुरुस्कार ग्रहण करने जाती एक आदिवासी महिला भी रही, जिनका नाम था ” तुलसी गौड़ा”।
तो आखिर कौन है सोशल मीडिया में तारीफ बटोर रही ये आदिवासी महिला और राष्ट्रपति भवन तक का इनका ये सफर किस रास्ते से हो कर गुज़रा?
तुलसी गौड़ा हलक्की जनजाति( Halakki tribe ) की एक आदिवासी महिला है। इनका जन्म कर्नाटक के होन्नाली गांव के एक गरीब परिवार में हुआ था। दो साल की उम्र में पिता के देहांत के बाद से ही ये अपनी माँ के साथ एक स्थानीय नर्सरी में काम करने लगी। स्कूल की देहलीज़ तक ना पहुँच पाने वाली इस महिला के मन में प्रकृति के प्रति इतना प्यार व स्नेह था कि इनकी जनजाति के लोग इन्हें ” वृक्ष देवी” के नाम से जानने लगे। किताबों से न सही पर अनुभव के कारण आज लोग इन्हें “वनों का विश्वकोश” (encyclopedia of forest) भी कहते है।
72 साल की तुलसी गौड़ा लगभग छः दशकों से एक पर्यावरणविद् (environmentalist) के रूप में काम कर रहीं हैं। पेड़ों के संरक्षण की दिशा में उनके काम के सम्मान के रूप में, कर्नाटक के वन विभाग ने उन्हें एक स्थायी नौकरी में नियुक्त किया, जहाँ उन्होंने लगातार 17 वर्षों तक काम किया और उसके बाद सेवानिवृत्त हो गईं।
तुलसी गौड़ा जंगल में पेड़ की हर प्रजाति के मातृ वृक्ष (Mother Tree) की पहचान करने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध है, फिर चाहे उसका स्थान कोई भी हो।
वह बीज संग्रह करने में भी माहिर हैं। बीज संग्रह पूरे पौधों की प्रजातियों को पुनः उत्पन्न करने और उस के लिए मातृ वृक्षों से बीजों को इकठ्ठा करने की एक प्रक्रिया होती है।
पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने ना केवल लाखों वृक्षों का संरक्षण किया है बल्कि लगभग 30,000 पौधों की प्रजातियों को लगाया है।
पर्यावरणवाद के अलावा, तुलसी गौड़ा ने अपने गांव में महिलाओं के अधिकारों के लिए भी काम किया है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के द्वारा पद्मश्री से समान्नित होने से पहले तुलसी गौड़ा कई और सम्मान अपने नाम कर चुकी है।
उनके प्रकृति प्रेम और ज्ञान को देखते हुए उन्हें कई पुरस्कार जैसे कि इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार, राज्योत्सव पुरस्कार, कविता मेमोरियल पुरस्कार आदि से सम्मानित किया जा चुका है।