यूँ तो पहाड़ी राज्य उत्तारखण्ड में कई परियोजनाओं ने पाँव पसेरे पर बांध निर्माण जैसी त्रासदी शायद ही कोई परियोजना ने उत्तारखण्ड वासियों को दी हो।
सालों पहले एक जख्म था, जिस में हँसती खेलती टिहरी, वहाँ के घर, चहचहाते आँगन सब जल समाधी ले बैठे और लोग अपनी पैतृक विरासत को आँखों में बसाए वहां से निकाले गए। आज फिर एक जख्म की कहानी बना है, लखवार ब्यासी परियोजना के अंतर्गत आता लोहारी गाँव।
क्या है लखवार- ब्यासी जलविद्युत परियोजना?
देहरादून से 75 किलोमीटर दूर लखवार ब्यासी एक जलविद्युत परियोजना है। यह परियोजना उत्तारखण्ड और पश्चिमी यूपी के अविकसित क्षेत्र में 927 मेगा वाट बिजली और 40,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करने का दावा करती है। इसके परियोजना के दो हिस्से हैं:-
- 192 मीटर ऊंचा लखवार बांध और 300 मेगावाट का पावरहाउस।
- 80 मीटर ऊंचा ब्यासी बांध, 2.7 किमी लंबी बिजली सुरंग और 120 मेगावाट का हाथीरी पावरहाउस।
अनुमान अनुसार इस परियोजना से कुल 6 गांव और लगभग 334 परिवार प्रभावित होंगे पर वहीं दूसरी तरफ़ ये परियोजना कई दावों के साथ सामने आई है।
परियोजना के अंतर्गत किये गए दावे
इस परियोजना के अंदर छह राज्य – उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली शामिल है।इन सभी छह राज्यों को इस परियोजना से पेयजल, सिंचाई और बिजली की सुविधा का लाभ मिलेगा।इस परियोजना के पूरा हो जाने पर इन सभी राज्यों में पानी की कमी की समस्या का समाधान होगा। यही नहीं इस परियोजना के पूरा होने पर बिजली का पूरा फायदा उत्तराखंड राज्य को मिलना भी सुनिश्चित हुआ है।
पर्यावरणविद् और स्थानीय लोगों में तबाही का डर क्यों?
बदल फटने, भूस्खलन व बाढ़ जैसी समस्याओं के लिए लगातार संवेदनशील रह चुके इस इलाके पर निर्माण परियोजना को ले कर लोग काफी समय से सवाल उठाते नज़र आते रहे, पर फिर भी ये बातें अक्सर नज़रंदाज़ होती ही दिखी है।
परियोजना के लिए प्रस्तावित क्षेत्र कई बार भूस्खलन की मार सह चुका है। नदी की लंबाई से 3 किमी तक लगते हुए भूस्खलन के लगभग 8 एक्टिव क्षेत्र पाए गए है।
इस के अलावा क्षेत्र में कई बार बाढ़ की समस्या भी उत्पन्न हुई है। कुछ साल पहले की तरह बादल फटने की घटना भी भयंकर बाढ़ जैसे हालात पैदा कर सकती है।पिछले एक दशक में, 2010, 2013, 2014, 2016 और 2019 में यमुना बेसिन के हिमालयी हिस्से में खतरनाक बाढ़ आ चुकी है जिस में से पिछली बाढ़ ने बांध की सुरक्षा दीवार तक को छतिग्रस्त कर दिया था।
यह भी बताया गया कि 1990 के दशक में लखवार परियोजना के लिए पहले से किए गए निर्माण कार्य के दौरान उत्पन्न मलबे को बांध स्थान के ऊपर की ओर फेंक दिया गया था जो तेज़ बहाव के दौरान नदी में गिर जाता है जिससे क्षेत्र में और समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
यही नहीं लखवाड़ स्थल से लगभग 3 किमी नीचे की ओर दो ‘अवैध’ स्टोन क्रशर चलने की भी बात सामने आई थी। इन स्टोन क्रेशर को अवैध रूप से नदी के अंदर और नदी के तल की गहरी खुदाई करते हुए भी पाया गया था। खुदाई से निकला मलबा फिर नदी में बहा दिया जाता है जिस से और दिक्कतें पैदा हो जाती है।
विस्थापना और अधिकारों की लड़ाई
स्थानीय लोगो में आक्रोश का एक मुख्य कारण उन के डूबते पैतृक गाँव से कई ज्यादा विस्थापना को ले कर है। सरकार का कहना है कि परियोजना के अंदर आने वाली ये जमीन सरकार द्वारा पहले ही खरीद ली गई थी और उन्हें उचित मुआवजा भी दिया गया है पर ये ग्रामीण लोगो की जिद्द है कि वो धरने पर बैठ गए।
जबकि ग्रामीणों का कहना है कि सरकार द्वारा उन्हें जमीन के बदले जमीन देने की बात की गई थी। जनवरी 2017 में सरकार द्वारा ग्रामीण लोगो को रेशम फार्म, विकासनगर में जमीन मुहैया कराने की बात कही गयी थी। फिर ये फैसला स्थगित किया गया और अंत में ख़ारिज हो गया। इस बात से नाराज़ ग्रामीण जब धरने पर बैठे तो 5 जून को उन्हें पकड़ कर जेल भेज दिया गया। अपनी जमीन और हक़ के लिए जब लोग गांव छोड़ने को तैयार नहीं हुए तो सरकार ने पिछले हफ्ते बिना किसी सुचना के 48 घण्टे के अंदर गाँव खली करने का आदेश सुना दिया।
देखते ही देखते पूरा गाँव जलमग्न हो गया। कुछ लोग अपने घर तोड़ कर नई जगह के लिए लकड़ी ले जाते नज़र आये तो कुछ लोग नम आँखों से दूर बैठ कर ये मंजर देखते रहे।
अपनी सभ्यता, संस्कृति के प्रतीक गांव को डूबता देख कई आंखें रोने को विवश हो पड़ी। अपना गाँव छोड़ कर लोग एक सरकारी स्कूल में पनाह ले रहे है जहाँ अभी तक उनकी विस्थापना को ले कर कुछ खास निर्णय नहीं लिया गया है। कितनी विडम्बना की बात है कि अपने घर, खेत खलियान होने के बावजूद भी आज ये गांव वासी बेघर हो गए है। अपना अस्तित्व खो कर इतिहास के पन्नो में दर्ज हो चुके इस गांव का दर्द हम केवल पढ़ सकते है, पर ये ग्रामीण शायद जीवन भर इसे महसूस करते रहेंगे।