पर्यावरण बोधी:गंगा नदी धरती पर माँ गंगा का अवतार मानी गयी है जिन्होंने धरती पर सर्वप्रथम कपिल मुनि के श्राप से भस्म भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार किया था। हिन्दू सभ्यता और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हम ये सुनते आये है कि गंगा का जल पवित्र होता है। ये माना जाता है कि गंगा स्नान से मुक्ति के द्वार खुल जाते है। हिंदू मान्यता कहती है कि कुछ अवसरों पर नदी में स्नान करने से अपराधों को क्षमा मिलती है और मोक्ष प्राप्ति में मदद होती है। यही कारण रहा है कि भारत की पवित्र नदियों में सर्वप्रथम नाम गंगा का लिया जाता है।
पर इस तथ्य में कितनी सच्चाई है? हिन्दू धर्म की इस मान्यता पर विज्ञान की क्या प्रतिक्रिया है?
तो क्या आप जानते है कि गंगा की पवित्रता का राज़ विज्ञान ने सन् 1896 में ही खोज दिया था, जब ब्रिटिश वैज्ञानिक एर्नस्ट हैंकिन ने ये पुष्टि की कि गंगा के पानी में शुद्धता के लिए जिम्मेदार एक जीवाणुरोधी कारक है, जो गंगा नदी के पानी में हैजा बैक्टीरिया को पनपने नहीं देता। बाद में इस कारक का नाम “बक्टेरिओफेज़ (bacteriophage)” रखा गया।
बैक्टीरियोफेज, वायरस होते हैं जो बैक्टीरिया को संक्रमित करते हैं और उनकी जीवाणुनाशक क्षमता के कारण उन्हें “बैक्टीरिया भक्षक” के रूप में भी जाना जाता है। यह माना जाता है कि हिमालयी पर्माफ्रॉस्ट में ये वायरस अजीवित रूप में बहुत पहले से जमे हुए थे। जब धीरे-धीरे ये पर्माफ्रॉस्ट पिघलने लगे तो इस कारण गौमुख में बैक्टीरियोफेज का एक बीज स्रोत बन गया। और गोमुख से अपनी यात्रा शुरू करती गंगा नदी की पवित्रता का यह एक मुख्य कारण रहा। समय बीतते वैज्ञानिकों ने यह भी पुष्टि की कि गंगा में बैक्टीरियोफेज की संख्या अन्य नदियों की तुलना में 3 गुना अधिक है, और यह गंगा नदी को अधिक अद्वितीय, जीवाणुरोधी और चिकित्सीय बनाती है।