आईपीसीसी रिपोर्ट 2040 तक मजबूत जलवायु जोखिम की भविष्यवाणी

Share this –

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल IPCC संयुक्त राष्ट्र में जलवायु विज्ञान विभाग का एक हिस्सा है जिसकी स्थापना 1988 में हुई थी। यह पैनल नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभाव और संभावित भविष्य के जोखिमों पर नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करता है। IPCC ने अपनी पहली रिपोर्ट वर्ष 1990 में जारी की थी। आईपीसीसी द्वारा तैयार की गई नवीनतम रिपोर्ट में 65 देशों के 234 लेखकों ने 14000 से अधिक अध्ययनों द्वारा हमारे ग्रह के भविष्य के बारे में एक अंतर्दृष्टि प्रदान की है। क्योंकि ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा दिन-ब- दिन बढ़ रही है, तो इस हिसाब से IPCC का मानना है कि 2040 तक सतह के तापमान में औसत वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से भी अधिक हो जाएगी और सदी के मध्य तक और 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकती है, जिसके कारण हम जो अभी अनुभव कर रहे है उस से भी अधिक गंभीर परिणाम सामने आ सकते है।


रिपोर्ट के अनुसार यदि कार्बन उत्सर्जन शून्य वार्मिंग तक कम हो जाता है, तो भी 2040 तक तापमान 1.5°C और 2060 तक 1.6°C तक बढ़ सकता है। हालांकि, तापमान 2100 तक 1.4°C तक ठंडा हो सकता है। और सबसे खराब परिदृश्य में वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुत अधिक कार्बन उत्सर्जन जो अब के स्तर से अगर तिगुना हो तो 2100 तक वार्मिंग 5.7°C तक पहुंच सकती है। वैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि 1800 के दशक के बाद से ग्रह में देखी गई लगभग सभी प्रकार की वार्मिंग मानव जनित हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा पिछले दो मिलियन वर्षों में सबसे अधिक बढ़ी है। ये उत्सर्जन 1988 में की गई अपेक्षा से कहीं अधिक तेजी से बढ़ा है।


इसमें से अधिकांश के लिए मानव गतिविधि जैसे की फॉसिल फ्यूल का जलना अदि जिम्मेदार माने गए हैं। मानवीय गतिविधियों के प्रभाव ने 2,000 वर्षों में अभूतपूर्व दर से जलवायु को गर्म कर दिया है। पिछला दशक अब तक के 125,000 वर्षों में किसी भी समय की तुलना में अधिक गर्म था। 1850-1900 की तुलना में 2011-2020 के बीच के दशक में वैश्विक सतह का तापमान 1.09 डिग्री सेल्सियस अधिक था। समुद्र-स्तर में वृद्धि 1901-1971 की तुलना में तीन गुनी हो गई है। आर्कटिक सागर की बर्फ पिछले 1,000 वर्षों की तुलना में सबसे कम है।
तो इस बढ़ते तापमान से आखिर होगा क्या?
प्रत्येक अतिरिक्त 0.5 डिग्री वार्मिंग से अत्यधिक गर्मियां, अत्यधिक वर्षा और सूखे में वृद्धि होगी। अतिरिक्त वार्मिंग पौधों, मिट्टी और समुद्र के रूप में मौजूद पृथ्वी के कार्बन सिंक को भी कमजोर कर देगी। समुद्र के स्तर में वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने जैसे नकारात्मक प्रभाव कई वर्षों तक जारी रहेंगे।
यह बात तो लाज़मी है कि मानवीय गतिविधियाँ जलवायु परिवर्तन का कारण बन रही हैं, जिससे अत्यधिक जलवायु घटनाएं हो रही हैं, जिनमें गर्मी की लहरें, भारी वर्षा और सूखा शामिल हैं ।
यदि आज भी इन बढ़ती मानवीय गतिविधियों में काबू नही पाया गया तो आने वाले कुछ साल धरती में एक भयावह स्तिथि पैदा कर सकते है।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *