बंगाल सदियों से अपने रॉयल बंगाल टाइगर की वजह से जाना जाता आया है। पर प्रगति की दौड़ में ये जानवर हमसे काफी पीछे छूट गए। यही कारण रहा कि स्वयं बाघ संरक्षण छेत्र होने के बावजूद भी बुक्सा टाइगर रिज़र्व ने पिछले 23 सालों में एक भी बाघ नहीं देखा था।
एक रिपोर्ट के अनुसार बुक्सा में बाघ को आखिरी बार 1998 में देखा गया था। उस के बाद से इस छेत्र में बाघ के होने के कोई सुराग हाथ नहीं लगे।
पिछले साल आई रिपोर्ट में ये मान लिया गया था कि बुक्सा में बाघ की प्रजातियों के पुनर्निर्वास के लिए यहाँ नवीनीकरण की जरूरत है। रिपोर्ट में काजीरंगा टाइगर रिज़र्व से कुछ बाघों को यहाँ लाये जाने की बात भी कही गई थी।
पर इस छेत्र में उम्मीद की किरण तब दिखी जब हाल ही में कुछ वन अधिकारियों को नदी किनारे बाघ के पंजों के निशान होने की आशंका हुई।
बंगाल की वन मंत्री ज्योतिप्रिया मल्लिक बताती है कि खबर के मिलते ही चार अधिकारियों की एक टीम छेत्र में भेजी गई। इस खबर की पुष्टि तब हुई जब पूर्वी दमनपुर इलाके में अधिकारियों द्वारा लगाए गए कैमरा ट्रैप में बाघ की कुछ तस्वीरें सामने आयी। बता दिया जाए कि पिछले महीने कैमरा ट्रैप द्वारा ही इस छेत्र में एक काले चीते के पाए जाने के भी प्रमाण मिले थे।वनाधिकारी बताते है कि बाघ का इस छेत्र में वापस नज़र आना एक शुभ संकेत है। शीर्ष शिकारी होने के कारण, जंगली बाघ धरती पर पारिस्थितिक तंत्र(ecosystem) में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन्हें कीस्टोन प्रजाति भी माना जाता है। इस वजह से बाघ जैसी प्रजातियों का संरक्षण और भी जरूरी हो जाता है।