दुनिया के सबसे तेज स्तनधारी जीव चीता अब भारत लौटने के लिए तैयार हैं। मध्य प्रदेश कुछ ही हफ्तों में चीतों को पेश करने वाला देश का पहला राज्य बनेगा। देश में आखिरी बार चीता पाए जाने का प्रमाण 74 साल पहले मिला था, इतने सालों बाद इन जंगली बिल्लियों की वापसी के लिए उठाया गया ये पहला कदम होगा।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) जेएस चौहान के नेतृत्व में मध्य प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया में डेरा डाले हुए थी। टीम 25 फरवरी को भारत लौटने के बाद अपनी रिपोर्ट शिवराज सिंह चौहान सरकार को सौंप चुकी है।
सफर: विलुप्त होने से पुनर्वास तक का
1947 में, कोरिया, सरगुजा जिसे आज छत्तीसगढ़ के नाम से जाना जाता है के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव, ने भारत में दर्ज अंतिम तीन एशियाई चीतों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके साथ ही 1952 में एशियाई चीता को भारत में विलुप्त घोषित कर दिया गया।
1970 के दशक में, इंदिरा गांधी चीतों को वापस लाने के लिए बहुत उत्सुक थीं और पर्यावरण विभाग ने औपचारिक रूप से ईरानी सरकार को पत्र लिखकर एशियाई चीतों को पुन: प्रजनन के लिए उपयोग करने का अनुरोध किया था जिसे मंजूर कर लिया गया था। पर देश में जल्द ही आपातकाल घोषित होते ही ये परियोजना रद्द हो गई थी।
2009 में, इस मुद्दे को फिर से उठाते हुए ये निश्चय किया गया कि अफ़्रीकी चीता को भारत में पुनर्वास के लिए लाया जाएगा।
WII द्वारा दिल्ली स्थित एक प्रमुख एनजीओ वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI) के सहयोग से एक बैठक का आयोजन किया गया।
साल 2010 में पांच केंद्रीय राज्यों में दस स्थलों का सर्वेक्षण किया गया और आखिर में 2020 में 261 वर्ग किलोमीटर तक फैले मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान, को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृति मिली। इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने 6 जनवरी 2022 को यह कहते हुए कार्य योजना शुरू की कि, “स्वतंत्र भारत में विलुप्त हो चुके चीते अब वापस आने के लिए तैयार हैं।”
क्यों जरूरी है चीता का संरक्षण?
विश्व वन्यजीव कोष (WWF) के अनुसार, जंगल में केवल 7,100 चीतों के बचे होने का अनुमान है – और इस वजह से उनका भविष्य अनिश्चित बना हुआ है। IUCN की रेड लिस्ट के तहत चीता को खतरे वाली प्रजाति घोषित किया जा चुका है।
ऐसे में इन राजसी जानवरों की रक्षा करना काफी महत्वपूर्ण है। 74 साल से भारतीयों को चीतों की कहानियां और जंगल में उनके अस्तित्व के बारे में बताया जाता रहा है, लेकिन अब आने वाली पीढ़ी न केवल कहानी सुनेगी बल्कि उन्हें देख भी सकेगी।
अब देखना ये होगा कि चीता की आवाज़ कितनी जल्दी और कितने सक्षम रूप से भारत की धरती पर गूँजती है।